शब्दों के जाल बुनते बुनते कही उलझ सा गया हूँ,
तुझे पास लाने की कोशिसो के बीछ तुझसे ही दूर हो गया हूँ,
क्या खता थी मेरी ये समझते समझते कही घूम सा हो गया हूँ,
तुझे पास लाते लाते, मैं खुद से ही कितना दूर हो गया हूँ|
प्यार और दोस्ती के बिच कही फस सा गया हूँ,
तुझे अपना बनाने की चाहतो के बीछ तुझमे ही कही खो गया हूँ,
क्या कमी रह गई ये सोचते सोचते कुछ गुमसुम सा हो गया हूँ,
तुझे समझाते समझाते खुद को ही समझना भूल गया हूँ|
कहते कहते तुझे सब कुछ कही बिच में रूक सा गया हूँ,
दिल और दिमाग की यह जंग शायद मैं हार सा गया हूँ,
क्या खामिया रह गयी ये ढूँढ़ते ढूँढ़ते जीना भूल सा गया हूँ,
तुझे अपना बनाते बनाते मैं खुद से ही बेगाना हो गया हूँ|
हाँ तुझे प्यार करते करते मैं मुझसे ही जुदा हो गया हूँ|
तुझे पास लाने की कोशिसो के बीछ तुझसे ही दूर हो गया हूँ,
क्या खता थी मेरी ये समझते समझते कही घूम सा हो गया हूँ,
तुझे पास लाते लाते, मैं खुद से ही कितना दूर हो गया हूँ|
प्यार और दोस्ती के बिच कही फस सा गया हूँ,
तुझे अपना बनाने की चाहतो के बीछ तुझमे ही कही खो गया हूँ,
क्या कमी रह गई ये सोचते सोचते कुछ गुमसुम सा हो गया हूँ,
तुझे समझाते समझाते खुद को ही समझना भूल गया हूँ|
कहते कहते तुझे सब कुछ कही बिच में रूक सा गया हूँ,
दिल और दिमाग की यह जंग शायद मैं हार सा गया हूँ,
क्या खामिया रह गयी ये ढूँढ़ते ढूँढ़ते जीना भूल सा गया हूँ,
तुझे अपना बनाते बनाते मैं खुद से ही बेगाना हो गया हूँ|
हाँ तुझे प्यार करते करते मैं मुझसे ही जुदा हो गया हूँ|
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